जन्माष्टमी का दिन था। हम सब परिवार वालों ने तिलोकपुर जाने का मन बनाया। सारे बहुत खुश थे। हम मंदिर में माथा टेक कर बाहर आ गए। बच्चे मनसा देवी मंदिर की तरफ जाने लगे। बच्चों के साथ बड़े भी जाने लगे। मुझे भी सब लोग बुला रहे थे के आ जाओ मनसा देवी के मंदिर माथा टेक कर आते हैं। मैं कभी अपने मोटापे की तरफ और कभी मनसा देवी मंदिर की चढ़ाई की तरफ देख रही थी।
उसी समय 14– 15 साल का लड़का मेरे पास पहुंचा। वह चढ़ाई की तरफ जाने लगा। मैं उसको देख कर हैरान थी। “आ जाओ आंटी जी आपको भी चलता हूं।” उसकी जिंदादिली देख कर मुझे और भी हैरानी हुई। उसने कहा “आंटी आपको तो भगवान ने तंदुरुस्त बनाया है, मेरी तो टांगे कमजोर हैं। मैं तो चल नहीं सकता। “मैंने देखा वह लड़का बैठ-बैठ कर आगे पहुंच गया और मेरे लिए एक अंधेरा छोड़ गया था।
उसकी हिम्मत, सहनशीलता और आत्मविश्वास देखकर मेरे पैर भी उसके पीछे-पीछे चल पड़े| मुझे तो पता भी नहीं लगा और मैं माता के दर्शन कर बापस आ गई थी|
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